दो घंटे में एसआईटी ने गिरोह से पूछे 50 सवाल

दो घंटे में एसआईटी ने गिरोह से पूछे 50 सवाल


एसआईटी - ओवरलोडिंग का धंधा कबसे चल रहा था?


धर्मपाल - 15 साल से


एसआईटी-किस तरह से धंधा संचालित होता था?


धर्मपाल - हर जिले में एक नेटवर्क था जिसमें विभाग से जुड़े लोग या प्राइवेट लोग शामिल थे।


एसआईटी-इस धंधे में कौन-कौन लोग जुड़े हैं?


धर्मपाल-आरटीओ विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों से सेटिंग होती थी


एसआईटी-ओवरलोडिंग का पैसा कैसे वसूलते थे?


धर्मपाल- ओवरलोडिंग में चलने वाले ट्रक मालिक स्वत: पैसा पहुंचाकर बुकिंग कराते थे। एक बार पैसा बुक हो गया तो महीने भर उनकी गाड़ियां चलती थीं और उसकी चेकिंग न हो, यह मेरी जिम्मेदारी थी।


एसआईटी-पैसे का बंटवारा आरटीओ विभाग में कैसे होता था?


धर्मपाल-आरटीओ विभाग में कहीं सिपाही तो कहीं कर्मचारी सीधे मेरे नेटवर्क से जुड़े थे। उन तक पैसा जाता था वह अधिकारियों तक पहुंचाते थे।


एसआईटी- क्या आरटीओ के कुछ अधिकारी सीधे पैसा भी लेते थे?


धर्मपाल- कभी-कभी कुछ अधिकारियों के पास सीधे पैसा जाता था पर ज्यादातर कर्मचारियों के जरिये ही जाता था।


एसआईटी- ओवरलोडिंग ट्रक की कहीं जांच नहीं होती है?


धर्मपाल- ट्रक मालिक ने अगर ओवरलोडिंग का पैसा जमा कर दिया तो वह पूरे महीने ट्रक में कुछ भी ले जाए उसकी जांच नहीं होती, हमलोगों से भी कोई मतलब नहीं होता कि ट्रक में क्या है?


मनीष से पूछताछ


एसआईटी- तुम कब से जुड़े हो इस धंधे से ?


मनीष- मैं पहले धर्मपाल सिंह के साथ काम करता था पर अब अपना अलग काम करता हूं। जरूरत पड़ने पर धर्मपाल सिंह के नेटवर्क का सहयोग ले लेता था।


एसआईटी-नेटवर्क में कौन-कौन शामिल थे?


मनीष-जिलों में आरटीओ के अधिकारियों-कर्मचारियों से सांठगांठ कर लेते थे और जिलों में मेरे आदमी काम करते थे।


एसआईटी-ट्रक वाले कैसे सम्पर्क में आते थे?


मनीष-यह एक नेटवर्क है, धर्मपाल की तरह ही लोग उसे भी इस काम में जानने लगे थे, लोग स्वत: सम्पर्क में आ जाते थे। ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ती थी।


एसआईटी-पैसे का बंटवारा कैसे होता था?


मनीष-सब सिस्टम बना हुआ है। किसे कितना जाना है, ईमानदारी से दे दिया जाता था। इस काम में पूरी ईमानदारी थी।


एसआईटी-वाहन के हिसाब से तय रकम पहुंचाई जाती थी या महीने में?


मनीष-जैसी सेटिंग, जैसा अधिकारी या कर्मचारी चाहते थे। ज्यादातर महीने में हिसाब होता था। रोज हुए काम का हम लोग लेखा-जोखा रखते थे। अधिकारी-कर्मचारी भी जानते थे कि इस महीने कितना काम हुआ है।


एसआईटी-ट्रकों की कहीं जांच क्यों नहीं होती थी?


मनीष-कैसे होती। सब मिले हुए थे। सभी को पता होता था कि किस ट्रक की करनी है और किसकी नहीं। भरोसे का सौदा था।


एसआईटी-ओवरलोडिंग का रेट कैसे तय होता था?


मनीष-वाहन के हिसाब से। जैसा वाहन, वैसा रेट। सभी को पता होता था कि किसे क्या देना है।